ओरण टीम का आक्रोश: 'लॉलीपॉप' आश्वासन से धोखा, धरना जारी... अब बड़े आंदोलन की चेतावनी!

जैसलमेर की ओरण टीम ने जनाक्रोश रैली के बाद प्रशासन द्वारा दिए गए आश्वासनों को 'लॉलीपॉप' और 'धोखा' करार देते हुए धरना जारी रखने का फैसला किया है।

Sep 28, 2025 - 10:57
ओरण टीम का आक्रोश: 'लॉलीपॉप' आश्वासन से धोखा, धरना जारी... अब बड़े आंदोलन की चेतावनी!

जैसलमेर की ओरण टीम ने शुक्रवार को हुई जनाक्रोश रैली के बाद प्रशासन द्वारा दिए गए आश्वासनों को 'धोखा' और 'गुमराह करने की साजिश' करार देते हुए अपना धरना जारी रखने का ऐलान किया है। टीम के सदस्यों का कहना है कि प्रशासन और नेताओं ने लंबी वार्ता के बहाने धरना स्थल पर मौजूद भीड़ को बिखेरने की कोशिश की, लेकिन अब सच्चाई सामने आ चुकी है। आश्वासन पत्र को गहराई से पढ़ने के बाद टीम को लगा कि यह मात्र 'लॉलीपॉप' है, जो पर्यावरण और वन्यजीवों की रक्षा के लिए 8 साल से चली आ रही लड़ाई को कमजोर करने का प्रयास है। टीम अब इससे भी बड़े आंदोलन की तैयारी में जुट गई है, जिससे जिले में तनाव बढ़ सकता है।

धोखे की परतें खुलीं: आश्वासन पत्र में वादों का उल्टा चेहरा

ओरण टीम के प्रमुख सदस्य सुमेरसिंह सांवता ने बताया कि जनाक्रोश रैली के बाद करीब ढाई घंटे चली लंबी वार्ता में प्रशासन ने कई बड़े वादे किए थे। वार्ता के दौरान प्रतिनिधिमंडल, नेताओं और अधिकारियों के बीच यह तय हुआ था कि प्रशासन के पास मौजूद सभी ओरण संबंधी फाइलें तत्काल राज्य सरकार को भेज दी जाएंगी। इसके अलावा, जिले भर में कई कंपनियों द्वारा ओरण जमीन पर चल रहे अवैध कामों को तुरंत रोकने और भौतिक सत्यापन कर जमीन को खाली कराने का आदेश हाथों-हाथ जारी किया जाएगा। लेकिन जब एडीएम धरना स्थल पर लिखित आश्वासन लेकर पहुंचे, तो कागज पर सब कुछ बदल गया।आश्वासन पत्र में केवल 6480 बीघा जमीन की एक फाइल को राज्य सरकार भेजने का जिक्र था, बिना यह स्पष्ट किए कि यह फाइल किस ओरण क्षेत्र की है। सुमेरसिंह ने व्यंग्य भरे लहजे में कहा, "प्रशासन के पास कलेक्टर कार्यालय में 7 फाइलें और तहसील स्तर पर कई अन्य फाइलें लंबित हैं। हमारी मांग थी कि इन्हें तुरंत भेजा जाए, लेकिन सिर्फ एक फाइल का नाम लेकर खानापूर्ति कर दी गई। इतनी लंबी वार्ता चलाने का मकसद यही था कि बाहर धरने पर बैठी जनता थककर बिखर जाए। अब हम इस लॉलीपॉप से मानने वाले नहीं हैं।" टीम का आरोप है कि यह रणनीति पूर्वनियोजित थी, ताकि बड़ी भीड़ का दबाव कम हो सके।

22 लाख बीघा का सवाल: 6480 बीघा से क्या होगा?

जिले में ओरण (सामुदायिक वन भूमि) का मुद्दा दशकों पुराना है, जो पर्यावरण संरक्षण और स्थानीय समुदायों के अधिकारों से जुड़ा हुआ है। सुमेरसिंह ने बताया कि जैसलमेर जिले में कुल करीब 22 लाख बीघा जमीन ओरण की है, जिस पर कंपनियां अवैध रूप से खनन और अन्य गतिविधियां चला रही हैं। टीम पिछले 8 साल से इसकी लड़ाई लड़ रही है, लेकिन प्रशासन की सुस्ती से समस्या बढ़ती जा रही है। खासकर 46 हजार बीघा जमीन की फाइलें राज्य सरकार और जिला प्रशासन के पास दो-तीन साल से लंबित पड़ी हैं। सुमेरसिंह ने सवाल उठाया, "इन फाइलों पर कार्रवाई करने में तो कोई समय नहीं लगेगा, फिर भी प्रशासन चुप्पी साधे हुए है। जनाक्रोश रैली के बाद सिर्फ 6480 बीघा का आश्वासन देकर क्या हल निकलेगा? यह तो 22 लाख बीघा के विशाल क्षेत्र का महज एक छोटा सा टुकड़ा है।"टीम का कहना है कि उनकी लड़ाई न केवल जमीन के लिए, बल्कि वन्यजीवों और पर्यावरण की रक्षा के लिए है। ओरण भूमि पर कंपनियों का कब्जा जंगलों को नुकसान पहुंचा रहा है, जिससे जैसलमेर का पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में है। उन्होंने मांग की है कि सभी लंबित फाइलों पर तत्काल कार्रवाई हो और वर्तमान में चल रहे अवैध कामों को रोका जाए।

जनता का विश्वास टूटा: बड़े आंदोलन की घंटी बजी

शुक्रवार की जनाक्रोश रैली में जैसलमेर की जनता बड़ी उम्मीदों के साथ शामिल हुई थी, लेकिन आश्वासनों के बाद अब धोखे का एहसास हो रहा है। ओरण टीम के सदस्यों ने कहा कि प्रशासन ने नेताओं की मौजूदगी में वादे किए, लेकिन कागज पर उन्हें कमजोर कर दिया। "हमारी प्रमुख मांगों—कंपनियों का काम रोकना, भौतिक सत्यापन और सभी फाइलें भेजना—पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। यह खानापूर्ति मात्र है," सुमेरसिंह ने कहा। टीम अब धरना जारी रखते हुए बड़े स्तर के आंदोलन की योजना बना रही है, जिसमें जिले भर के ग्रामीण और पर्यावरण कार्यकर्ता शामिल हो सकते हैं।