पूर्व MLA रूपाराम धनदे ने दिया फकीर परिवार को सुलह का खुला ऑफर, बोले ; पंचायती कर सुलझाए गुटबाजी का कांटा
जैसलमेर के पूर्व विधायक रूपाराम धनदे ने जिला कांग्रेस कमेटी की बैठक में गुटबाजी को खत्म करने के लिए सालेह मोहम्मद और फकीर परिवार के साथ मध्यस्थता की पेशकश की। उन्होंने 'पंचायती' के जरिए विवाद सुलझाने का प्रस्ताव दिया।

राजस्थान की रेगिस्तानी धरती पर राजनीतिक रेत के टीलों की तरह उभरती गुटबाजी अब खुली चुनौती बन चुकी है। जैसलमेर जिले की कांग्रेस इकाई में लंबे समय से सुलग रही आंतरिक कलह को खत्म करने के लिए पूर्व विधायक रूपाराम धनदे ने एक ऐसी अपील की है, जिसने स्थानीय सियासत में हलचल मचा दी है। एक पार्टी बैठक में दिए गए भाषण में धनदे ने सालेह मोहम्मद के नेतृत्व वाले फकीर परिवार के साथ मध्यस्थता की पेशकश की है। उनका कहना है, "हम दो जनो, दो परिवारों के बीच अगर कोई पंच बने, तो हम मध्यस्थता करने को तैयार हैं।" यह बयान न सिर्फ गुटबाजी के घावों को कुरेद रहा है, बल्कि आगामी स्थानीय निकाय चुनावों से पहले कांग्रेस की एकजुटता पर सवाल भी खड़े कर रहा है।
भाषण का केंद्र: 'पंचायती' से सुलझाएं घरेलू झगड़े
जिला कांग्रेस कमेटी की बैठक में पूर्व विधायक रूपाराम धनदे ने अपने भाषण में खुलकर गुटबाजी का जिक्र किया। उन्होंने कहा, "हम दो जनो, दो परिवार एक धनंदे परिवार है, उसका मुखिया मैं हूं, एक फकीर का परिवार, साले मोहम्मद जी मुखिया है। हमारे मित्र गाजी फकीर हमारे बीच नहीं है, ये इन दो में लफड़ा है, तो दोनों का भूत काड़ो। कोई पंच बनके में जनमखान जी को पंच बनाता हूं, ये अपने प्रभारी तो है ही, में तो जनमखान जी को पंच मानता हूं।" यहां 'जनमखान जी' से उनका इशारा स्थानीय नेता जानम खां की ओर था, जिन्हें उन्होंने मध्यस्थ के रूप में नामित किया। धांडे ने जोर देकर कहा कि पंचायती करके एक-दूसरे की बुराई करने से कुछ हासिल नहीं होगा। "पंच दिली वालों को तकलीफ नहीं देनी चाहिए। दो-तीन पंच जयपुर में बैठते हैं, पर उनके नियम यहां आते हैं। हो सकता है कि इन पंचों की हम लोग न मानें... तो इन लोगों को रिपोर्टिंग करनी चाहिए।"
यह बयान बैठक में मौजूद ब्लॉक अध्यक्षों, मंडल अध्यक्षों और अन्य पदाधिकारियों के बीच सन्नाटा छोड़ गया। धनदे ने आगे पार्टी की मजबूती पर जोर देते हुए कहा कि जैसलमेर विधानसभा क्षेत्र का एरिया राजस्थान की 30 विधानसभाओं जितना बड़ा है, जहां बिखरे हुए लोग हैं। ढाणियों में रहते हैं, एक ढाणी में जाओगे तो लोग बकरियां चराने या मजूरी पर निकल चुके होंगे। संपर्क में समय लगेगा, लेकिन संगठन को मजबूत करना होगा।"
फकीर परिवार का पुराना रसूख और धांडे का संघर्ष
जैसलमेर की राजनीति में फकीर परिवार का बोलबाला रहा है। गाजी फकीर,जो 2021 में निधन हो चुके हैं,जिनको 'पश्चिमी राजस्थान का सुल्तान' कहा जाता था। उनके बेटे सालेह मोहम्मद आजादी के बाद जैसलमेर को पहली बार कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिलाने वाले नेता हैं। सालेह 2000 में 23 साल की उम्र में पंचायत समिति प्रधान बने, फिर जिला प्रमुख और फिर पोकरण विधायक व मंत्री बने। परिवार में पत्नी, भाई-बहन और रिश्तेदार पंचायत स्तर से लेकर जिला परिषद तक सक्रिय हैं। वहीं, रूपाराम धनदे दलित समुदाय से आते हैं और जैसलमेर से पूर्व विधायक रह चुके हैं। वे खेल संगठनों में भी सक्रिय रहे—भारत हैंडबॉल, बास्केटबॉल और टेनिस कोट्स के पदाधिकारी। धनदे ने भाषण में अपने जीवन का जिक्र किया, "मैं एक आईएम की नौकरी से शुरू किया, राजस्थान स्टेट का चीफ इंजीनियर बना। हेल्पर तक को एडजस्ट किया, खुद हथौड़ा-पेचकस लेकर काम किया।
"गुटबाजी का बीज 2020 से बोया गया, जब धनदे के बेटे हरीश धनदे ने बाड़मेर में सालेह मोहम्मद और फकीर परिवार पर मोर्चा खोला। हाल ही 2025 में पूर्व मंत्री प्रताप खाचरियावास ने सालेह परिवार को 'देशभक्त' बताते हुए 1971 के भारत-पाक युद्ध का जिक्र किया, जहां हिंदू-मुस्लिम भाईचारा जैसलमेर की मिसाल बना। लेकिन स्थानीय स्तर पर आरोप-प्रत्यारोप जारी हैं—मतदाता सूची में हेरफेर से लेकर संगठनात्मक दबदबे तक।