पॉवर सेंटर को बीजेपी क्यों मान रही विधायक ? जानिए क्या है पूरी कहानी ?
बाड़मेर की बात करें तो पिछले विधानसभा चुनाव के बाद से एक नाम इतना चलन में है कि चाहे वो आरएसएस हो या बीजेपी दोनों उन्हें पसंद करते है। हालांकि, पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी जमानत भले ही जब्त हुई हो ? लेकिन, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। यही वजह है कि राजस्थान की बीजेपी विधायक को विधायक मानने की बजाय अपनी पार्टी के हारे हुए प्रत्याशियों को विधायक मान रही है। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं स्वरुप सिंह खारा की.

पश्चिमी राजस्थान की राजनीति जिस कदर करवट लेती हैं। सरकार उसी पार्टी की बनती है। चाहे वो 2013 का विधानसभा चुनाव हो या 2018 का. 2013 के विधानसभा चुनाव में महज एक बाड़मेर मुख्यालय की सीट को छोड़कर बीजेपी ने अन्य 6 सीटों पर अपना कब्ज़ा जमाया था. वहीं 2018 में इसके उलट सिवाना को छोड़कर 6 अन्य सीटों पर कब्ज़ा जमाकर कांग्रेस ने बीजेपी को कड़ी शिकस्त दी थी. जीत की हेट्रिक लगा चुके मेवाराम जैन को पिछले विधानसभा चुनावों में प्रियंका चौधरी के सामने हार का सामना करना पड़ा था. पिछले तीन चुनावों के बाद मेवाराम जैन पहली बार हारे थे. चौहटन से कांग्रेस के पदमाराम मेघवाल को हराकर आदूराम मेघवाल, बीजेपी का दामन छोड़ फिर से कांग्रेस में आए कर्नल सोनाराम चौधरी को हराकर के. के. विश्नोई सरकार में मंत्री बनें. शिव विधानसभा से बीजेपी -कांग्रेस- RLP और निर्दलीय को पछाड़कर रविन्द्रसिंह भाटी विधायक बने. बायतु में RLP और बीजेपी को हराकर हरीश चौधरी विजयी घोषित हुए. कांग्रेस के मानवेन्द्र सिंह जसोल और निर्दलीय सुनील परिहार को हराकर सिवाना से हमीर सिंह भायल लगातार तीसरी बार विधायक चुने गए. और पचपदरा विधानसभा से कांग्रेस के विधायक रहे मदन प्रजापत और RLP के उम्मीदवार रहे थानसिंह डोली को पूर्व मंत्री अमराराम चौधरी के बेटे अरुण चौधरी के सामने हार का सामना करना पड़ा. अभी कांग्रेस के पास एक, बीजेपी के पास चार और दो सीटें निर्दलीयों के पास है.लेकिन, बाड़मेर के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि किसी सरकार ने हारे हुए प्रत्याशी को विधायक से ज्यादा तव्वजो दी हो.
बाड़मेर की बात करें तो पिछले विधानसभा चुनाव के बाद से एक नाम इतना चलन में है कि चाहे वो आरएसएस हो या बीजेपी दोनों उन्हें पसंद करते है। हालांकि, पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी जमानत भले ही जब्त हुई हो ? लेकिन, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। यही वजह है कि राजस्थान की बीजेपी विधायक को विधायक मानने की बजाय अपनी पार्टी के हारे हुए प्रत्याशियों को विधायक मान रही है। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं स्वरुप सिंह खारा की.
खारा को बताया गया विधायक, पोस्टर वायरल
11 सितंबर 2025 यानि कल से एक पोस्टर सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। जिसमें जयपुर प्रदेश मुख्यालय पर बीजेपी की सेवा पखवाड़ा प्रदेश स्तरीय कार्यशाला का आयोजन हुआ। इस कार्यक्रम के लिए बीजेपी ने आरएसएस की पृष्ठभूमि वाले और अपने हारे हुए प्रत्याशी को बीजेपी ने विधायक बता दिया। स्वरूपसिंह खारा शिव से विधायकी का चुनाव लड़ने से पहले बाड़मेर जिला बीजेपी के पूर्व जिलाध्यक्ष भी रह चुके है। वर्तमान बीजेपी सरकार में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के साथ खारा ने लगातार 3 साल तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में प्रशिक्षण भी प्राप्त किया है। मुख्यमंत्री के करीबी होने के कारण ही उन्हें पॉवर सेंटर का नाम दिया गया है, ऐसा लोगों का मानना हैं। बाड़मेर विधानसभा से डॉक्टर प्रियंका चौधरी निर्दलीय विधायिका है. लेकिन, उनकी बजाय बीजेपी सरकार हारे हुए प्रत्याशी दीपक कडवासरा को तव्वजो दे रही है. और शिव विधानसभा से भाटी की बजाय बीजेपी स्वरूपसिंह खारा को अधिक तव्वजो दे रही है.
भाटी से हारे थे खान, खारा और रावलोत
पिछले विधानसभा चुनाव में स्वरूपसिंह खारा को बीजेपी ने शिव विधानसभा से अपना प्रत्याशी घोषित किया था। इससे पहले जोधपुर की जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी से छात्रसंघ अध्यक्ष रहे रविंद्रसिंह भाटी भी शिव विधानसभा से बीजेपी का टिकट चाहते थे। इसलिए ही, बीजेपी में शामिल हुए। लेकिन, बीजेपी ने भाटी को दरकिनार करते हुए स्वरूपसिंह खारा को शिव विधानसभा से अपना उम्मीदवार घोषित किया। इसी वजह से भाटी ने बीजेपी का दामन छोड़ निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया।
4 हजार वोटों से जीते थे रविन्द्र सिंह भाटी
शिव विधानसभा से बीजेपी के प्रत्याशी स्वरूपसिंह खारा, निर्दलीय रविंद्रसिंह भाटी, कांग्रेस प्रत्याशी अमीन खान, कांग्रेस से बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे बाड़मेर कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष अमीन खान और बीजेपी का दामन छोड़कर हनुमान बेनीवाल की RLP पार्टी का दामन थाम चुके पूर्व विधायक जालमसिंह रावलोत आमने - सामने चुनाव लड़ रहे थे। कोई अमीन खान तो कोई फतेह खान की जीत के दावे कर रहा था। लेकिन, जब मतगणना के बाद परिणाम आया तो रविंद्रसिंह भाटी ने करीब 4 हजार से अधिक वोटों से जीत गए. यहीं से शुरू हुई खारा और भाटी के बीच अदावत.
दोनों में अक्सर देखने को मिलती है होड़
विधायक बनने के बाद से अब तक लगातार शिव विधायक रविंद्र सिंह भाटी हर बार जनहित के मुद्दों को विधानसभा में उठाने के साथ आमजन के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। बावजूद, उनकी भाजपा सरकार में कोई नहीं सुन रहा, ऐसा लोगों का मानना है। उधर, स्वरुप सिंह खारा भी लगातार जनता से जुड़े रहने की जद्दोजहद में नजर आते हैं. बीजेपी के हारे हुए प्रत्याशी और विधायक में श्रेय लेने होड़ हरदम मची रहती है। दोनों अपने-अपने कामों को सोशल मीडिया पर दिखाते हुए सरकार को धन्यवाद ज्ञापित करते हैं। लेकिन, जनता इसी भ्रम में डूबी हुई है कि यह काम हमारे विधायक जी ने करवाए हैं या हारे हुए प्रत्याशी ने। जनता अभी भी असमंजस में है। बीजेपी की प्रदेश कार्यकारिणी सिर्फ उन्हीं लोगों को विधायक मान रही है, जो पिछले चुनाव में उनके प्रत्याशी रहे थे. जो कल बीजेपी ने स्पष्ट भी कर दिया। इस पोस्ट के वायरल होने के बाद से ही लोग सोशल मीडिया पर चर्चाओं का बाजार गर्म है। लोग कह रहे हैं कि बीजेपी को इस तरह से विधायकों को अनदेखा करना कहां तक जायज है ? हालांकि, आप इस खबर पर क्या सोचते हैं ? कमेंट बॉक्स ने हमें अपनी राय जरूर दें।