पाकिस्तान से जुड़ी है भारत के इस अद्भुत मंदिर की कहानी, दर्शन मात्र से होता है सकारात्मक ऊर्जा का संचार
बाड़मेर जिले के चौहटन कस्बे के छोटे से गांव ढोक के पास एक तरफ पहाड़ी और दूसरी तरफ बड़े रेतीले टीले के बीच बना मां वांकल (विरात्रा धाम) का मंदिर आस्था और श्रद्धा का केंद्र है।

पाकिस्तान से जुड़ी है भारत के इस अद्भुत मंदिर की कहानी, दर्शन मात्र से होता है सकारात्मक ऊर्जा का संचार
बाड़मेर जिले के चौहटन कस्बे के छोटे से गांव ढोक के पास एक तरफ पहाड़ी और दूसरी तरफ बड़े रेतीले टीले के बीच बना मां वांकल (विरात्रा धाम) का मंदिर आस्था और श्रद्धा का केंद्र है। इस मंदिर की मूर्ति में दिव्य शक्ति है और इसके दर्शन से मन के बुरे विकार दूर होते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
भाद्रपद मास की त्रयोदशी को आज हजारों की संख्या में पहुंचे लोगों ने मां वांकल के दर्शन कर अपनी - अपनी मन्नतें मांगी। वांकल माता विरात्राधाम को मां हिंगलाज का स्वरूप भी माना जाता है।
वैसे तो हर माह में शुक्ल पक्ष चतुर्दशी को हजारों लोग यहां दर्शनों को पहुंचते है। लेकिन, नवरात्रि में हर दिन यहां हजारों लोग दर्शनों को उमड़ते हैं और धार्मिक महत्व वाले बड़े महीनों और शारदीय नवरात्रि में यहां तीन दिवसीय (त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा) मेला भरता है। जिसमें देश भर से अलग अलग इलाकों के लोग बड़ी संख्या में दर्शनों को पहुंचते हैं और माता के दर्शनों का लाभ पाते हैं।
पाकिस्तान से जुड़ी है इस मंदिर की अद्भुत कहानी
विरात्रा वांकल माता की कहानी उज्जैन के राजा वीर विक्रमादित्य और 52 शक्तिपीठों में से एक पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हिंगोल नदी के तट पर स्थित माता हिंगलाज के मंदिर से जुड़ी है।
पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि उज्जैन के राजा वीर विक्रमादित्य मां हिंगलाज के परम भक्त हुआ करते थे। राक्षसों के संहार के बाद एक समय ऐसा आया जब उज्जैन नगरी में लोग महामारी के दौर से गुजरे और एक के बाद एक हजारों की संख्या में लोग मरने लगे। राजा वीर विक्रमादित्य अपनी प्रजा को मरते देख बहुत दुखी हुए और सैनिक बलों के साथ घोड़े पर सवार होकर बलूचिस्तान स्थित मां हिंगलाज के दर्शन को रवाना हुए। जो अब पाकिस्तान में है।
कहा जाता है कि जब विक्रमादित्य ने हिंगलाज माता मंदिर पहुंचकर जब माता की प्रतिमा को अपनी पीड़ा सुनाई तो मां हिंगलाज ने प्रकट होकर विक्रमादित्य को ये आशीर्वचन दिया कि "अब तेरे प्रदेश में कोई भी व्यक्ति या जीव उस महामारी ने नहीं मरेगा।" साथ ही विक्रमादित्य को यश, वैभव, सम्मान, न्यायप्रिय शासक के रूप में ख्याति का वरदान दिया।
हालांकि, इससे भी राजा विक्रमादित्य तो संतोष नहीं हुआ और माता हिंगलाज से रोते हुए प्रार्थना करने लगे कि "आप इतना दूर यहां विराजमान हैं और मुझे आपके नित्य दर्शनों के साथ आपकी कभी भी जरूरत पड़ सकती है। इसलिए आप मेरे साथ उज्जैन पधारें।"
हिंगलाज माता ने कहा कि "मेरे यहां भी असंख्य भक्त है। इसलिए मैं वहां तो नहीं चल सकती। लेकिन, मेरा एक स्वरूप 'वांकल' तुम्हारे साथ भेज सकती हूं, जो तुम्हारी क्षेत्र की रक्षा करेगी। लेकिन, इसमें मेरी एक शर्त है कि "जहां तुमने पीछे मुड़कर हिंगलाज की तरफ देख लिया तो तुझे मेरे स्वरूप को उसी स्थान पर स्थापित करना पड़ेगा। उससे आगे मैं एक कदम भी नहीं चलूंगी।" राजा विक्रमादित्य ने माता हिंगलाज के वचनों से बंधते हुए सहमति जता दी।
हिंगलाज माता का स्वरूप लेकर विक्रमादित्य राजस्थान की पश्चिमी सीमा से होते हुए दक्षिणी सीमा से उज्जैन के लिए रवाना जाने वाले थे। चौहटन में एक तरफ रेत का बड़ा टीला और दूसरी तरफ पहाड़ी देख सुरक्षित स्थान समझ सैनिक बलों के साथ रात्रि विश्राम के लिए रुक गए।
दिशा भ्रमित हो गए विक्रमादित्य
सुबह जैसे ही राजा विक्रमादित्य की आंख खुली तो राजा ने दिशा भ्रमित होकर हिंगलाज की तरफ देख लिया। कहा जाता है कि उसी दौरान आसमान से आकाशवाणी हुई कि "हे राजा विक्रमादित्य, तूने जो मुझे वचन दिया था, वो यहीं समाप्त होता है...और अब मैं यहां से आगे नहीं चल पाऊंगी। तुझे मेरे स्वरूप को अब यहीं स्थापित करना पड़ेगा।"
आकाशवाणी सुनकर राजा विक्रमादित्य को बहुत दुःख तो हुआ। लेकिन, माता हिंगलाज की मर्जी मानकर विक्रमादित्य से उनके स्वरूप को वहीं स्थापित कर दिया।
जिसके बाद उसी स्थान पर मंदिर का भव्य निर्माण हुआ। मंदिर निर्माण के दौरान चली खुदाई में एक दिव्य और अद्भुत प्रतिमा भी निकली। इसमें प्रतिमा की गर्दन टेढ़ी थी। उसी प्रतिमा को भव्यतम मंदिर के स्थापित किया गया।
मंदिर की परिक्रमा करने के दौरान आप नव देवियों के दर्शन करने के साथ वीर विक्रमादित्य की प्रतिमा भी आपको उसी क्रम में नजर आएगी। शारदीय नवरात्रि के दौरान यहां मेला लगता है। तब लाखों की संख्या के लोग देश के कोने कोने से वांकल मां के दर्शनों को आते है।