आग से नहीं, शिफ्टिंग में गई जान": SMS अस्पताल अधीक्षक के बयान ने उजागर की लापरवाही की लपटें

जयपुर के SMS अस्पताल में 5 अक्टूबर 2025 की रात न्यूरो ICU में शॉर्ट सर्किट से लगी आग ने आठ मरीजों की जान ले ली, जिनमें तीन महिलाएं थीं। अस्पताल अधीक्षक डॉ. अनुराग धाकड़ के बयान, "आग से कोई नहीं मरा, शिफ्टिंग में जान गई," ने परिजनों में आक्रोश पैदा किया।

Oct 6, 2025 - 14:16
आग से नहीं, शिफ्टिंग में गई जान": SMS अस्पताल अधीक्षक के बयान ने उजागर की लापरवाही की लपटें

जयपुर के सवाई मान सिंह (SMS) अस्पताल में रविवार रात 11:20 बजे न्यूरो ICU में लगी आग ने आठ जिंदगियों को लील लिया और सिस्टम की लापरवाही को बेपर्दा कर दिया। अस्पताल अधीक्षक डॉ. अनुराग धाकड़ का बयान – "कोई मरीज आग से नहीं मरा, वे पहले से क्रिटिकल थे और शिफ्टिंग के दौरान उनकी जान चली गई" – न सिर्फ परिजनों के जख्मों पर नमक छिड़क गया, बल्कि प्रशासन की संवेदनहीनता को भी उजागर कर गया। यह हादसा न केवल तकनीकी खामियों, बल्कि मानवीय लापरवाही और जवाबदेही की कमी का जीता-जागता सबूत है।

आग और धुएं में दम तोड़ती जिंदगियां

रविवार रात करीब 11:10 बजे न्यूरो ICU के स्टोर रूम में शॉर्ट सर्किट से शुरू हुआ हल्का धुआं मिनटों में भयावह आग में बदल गया। ऑक्सीजन पाइपलाइन की गैस रिसाव ने लपटों को और विकराल कर दिया। ICU में भर्ती 11 मरीजों में से आठ की मौत हो गई, जिनमें तीन महिलाएं थीं। पांच अन्य मरीज अभी भी वेंटिलेटर पर जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। परिजनों ने बताया कि फायर अलार्म नहीं बजा, स्प्रिंकलर काम नहीं कर रहे थे, और स्टाफ के ज्यादातर लोग भाग खड़े हुए। एक परिजन, रमेश मीणा ने कहा, "हमने अपनी बहन को बेड समेत घसीटकर बाहर निकाला, लेकिन धुएं ने उसे निगल लिया।"दमकलकर्मियों ने घंटों की मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया, लेकिन तब तक ICU का अधिकांश हिस्सा जल चुका था। उपकरण, वेंटिलेटर और दस्तावेज राख में तब्दील हो गए। प्रत्यक्षदर्शी श्यामलाल ने बताया, "डॉक्टर और नर्स भाग गए। हम अकेले मरीजों को बचाने की कोशिश करते रहे।" 

लापरवाही की परतें: सिस्टम की नाकामी

SMS अस्पताल में यह हादसा पहली बार नहीं हुआ। जांच में सामने आईं ये खामियां सिस्टम की बदहाली को दर्शाती हैं: 

फायर सेफ्टी का अभाव: फायर अलार्म और स्मोक डिटेक्टर निष्क्रिय थे। स्प्रिंकलर सिस्टम की अनुपस्थिति ने आग को अनियंत्रित होने दिया। परिजनों का आरोप है कि स्टाफ ने शुरुआती 20 मिनट में कोई कार्रवाई नहीं की।

पुरानी वायरिंग और उपकरण: शॉर्ट सर्किट की वजह पुरानी इलेक्ट्रिकल वायरिंग थी। ऑक्सीजन सिलेंडरों का रखरखाव न होने से गैस रिसाव ने आग को और घातक बनाया।

अप्रशिक्षित स्टाफ: स्टाफ को आपातकालीन स्थिति में मरीजों को शिफ्ट करने का प्रशिक्षण नहीं था। कई परिजनों ने आरोप लगाया कि डॉक्टर और नर्सें मरीजों को छोड़कर भाग गए।

प्रशासनिक उदासीनता: पिछले साल आयुष्मान टावर में लगी आग के बाद भी अस्पताल ने सबक नहीं लिया। नियमित ऑडिट और मेंटेनेंस की कमी साफ दिखी।

अधीक्षक का बयान: संवेदना की कमी

अधीक्षक डॉ. धाकड़ का बयान कि "आग से कोई नहीं मरा, शिफ्टिंग में जान गई" ने परिजनों का गुस्सा भड़का दिया। एक मृतक की बेटी, राधा ने रोते हुए कहा, "मेरे पिता कोमा में थे, लेकिन जीवित। धुएं ने उनकी सांस छीनी। क्या ये जिम्मेदारी से बचने का बहाना है?" अधीक्षक ने मेडिकल साइंस की दलील दी, लेकिन संवेदना जाहिर करने में चूक गए। यह बयान न केवल असंवेदनशील था, बल्कि सिस्टम की जवाबदेही से भागने की कोशिश भी दिखा। 

राजनीतिक हलचल और जांच के वादे

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने अस्पताल का दौरा कर 6 सदस्यीय जांच समिति गठित की, जो अग्निशमन व्यवस्था और हादसे के कारणों की जांच करेगी। स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने कहा, "लापरवाही बर्दाश्त नहीं होगी।" विपक्षी नेता अशोक गहलोत ने इसे "प्रशासनिक विफलता" करार दिया, जबकि सोशल मीडिया पर #SMSHospitalFire ट्रेंड के साथ लोग सवाल उठा रहे हैं: "कब तक जांच, कब होगी कार्रवाई?"