भाटी का वार: बाड़मेर में गांधी-नेहरू की दुहाई देने वाले नेताओं पर तंज

रविंद्र सिंह भाटी ने मानसून सत्र में धर्मांतरण विरोधी बिल का समर्थन किया। गीता के श्लोक से शुरूआत कर कहा, यह बिल संस्कृति रक्षा के लिए जरूरी। विपक्ष पर वोट की राजनीति और समाज तोड़ने का आरोप लगाया।

Sep 9, 2025 - 16:38
भाटी का वार: बाड़मेर में गांधी-नेहरू की दुहाई देने वाले नेताओं पर तंज
विधानसभा में रवींद्रसिंह भाटी

रविंद्र सिंह भाटी का धर्मांतरण विरोधी बिल का समर्थन और विपक्ष पर निशाना

आज मानसून सत्र में धर्मान्तरण विरोधी क़ानून के लिए बात रखते हुए।

रविंद्र सिंह भाटी ने आरोप लगाया कि पिछले 80 वर्षों से जहाँ हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल कायम थी, वहीं आज कुछ नेता जो खुद गांधी और नेहरू की बात करते हैं, वोट के लालच और राजनीति के स्वार्थ में समाज को तोड़ने का काम कर रहे हैं।

गीता के श्लोक से आरंभ की बात

शिव विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने श्री कृष्ण के श्लोक "यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत" का उल्लेख करते हुए बिल का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि यह बिल हमारे देश और संस्कृति की रक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है।

धर्म की रक्षा की बात

भाटी ने कहा, "मैं उस कुल से आता हूं जिसने धर्म की रक्षा हेतु अपने प्राणों की आहुति दी।" उन्होंने यह भी बताया कि कई राजनीतिक पार्टियों की विदेशी ताक़तें देश को तोड़ने की साजिश रच रही हैं। धर्म और पैसे के माध्यम से भोली-भाली जनता को गुमराह कर सामूहिक धर्मांतरण जैसी घटनाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है।

धर्म: निजी आस्था से भगवान तक का रास्ता

भाटी ने स्पष्ट किया कि धर्म एक निजी आस्था का मार्ग है, जो व्यक्ति को उसके अंदर बैठे भगवान तक पहुंचाता है। उन्होंने गीता का हवाला देते हुए कहा कि "पूरे दुनिया का धर्म एक ही है – मानव धर्म।"

धर्मांतरण विरोधी कानून की आवश्यकता

विधायक भाटी ने जोर देकर कहा कि देश में धर्मांतरण विरोधी कानून बनना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि 80 वर्षों की स्वतंत्रता के बाद हमारे क्षेत्र में धर्म के नाम पर कोई दंगा नहीं हुआ, लेकिन आज वोट के लालच में तुच्छ राजनीति के चलते सामाजिक और धार्मिक सौहार्द बर्बाद हो रहा है। लोग हिंदू-मुस्लिम, जाट-राजपूत के नाम पर बांटे जा रहे हैं।

पूर्व नेताओं का उदाहरण

रविंद्र सिंह भाटी ने अपने भाषण में स्वर्गीय जसवंत सिंह, तनसिंह जी, गंगारामजी, वृद्धिचंद जैन, हादी साहब जैसे नेताओं का उदाहरण देते हुए कहा कि ये सभी नेता कभी धर्म की राजनीति नहीं करते थे। उनका उद्देश्य केवल समाज की भलाई और एकता को बनाए रखना था।

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